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Wednesday, 27 August, 2025

Altaf Hussain News: मुहाजिरों की आखिरी उम्मीद मोदी जी? अल्ताफ हुसैन की भावुक अपील

Altaf Hussain News: पाकिस्तान में रह रहे मुहाजिरों पर हो रहे कथित अत्याचारों के बीच मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) के संस्थापक अल्ताफ हुसैन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि वे भारत से गए इन उर्दू भाषी लोगों की मदद करें। हुसैन ने अपने लाइव संबोधन में पाकिस्तान सेना पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि मुहाजिरों को आज भी पाकिस्तानी नागरिक नहीं माना जाता।

भारत-पाक तनाव के बीच अल्ताफ हुसैन की भावुक अपील

पहलगाम में हुए आतंकी हमले और भारत द्वारा चलाए गए “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव चरम पर है। ऐसे माहौल में लंदन में निर्वासित जीवन जी रहे MQM प्रमुख अल्ताफ हुसैन ने सोशल मीडिया के जरिए एक लाइव संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक भावुक अपील की है।

Altaf Hussain News: पीएम मोदी को बताया साहसी नेता

अल्ताफ हुसैन ने अपने बयान में कहा कि उन्होंने पीएम मोदी को कोई पत्र नहीं भेजा, लेकिन उन्हें नैतिक और साहसी नेता बताया। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी का बलूच समुदाय के प्रति रुख इंसानियत को दर्शाता है। इसी भावना के तहत उन्होंने भारत से पाकिस्तान गए मुहाजिरों की स्थिति पर ध्यान देने की अपील की।

कौन हैं मुहाजिर?

मुहाजिर वे लोग हैं जो 1947 में भारत-पाक विभाजन के दौरान भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से पाकिस्तान चले गए थे। ये अधिकतर उर्दू भाषी हैं और पाकिस्तान के सिंध, कराची और लाहौर जैसे शहरों में बसे। हालांकि, कई दशकों बाद भी इन लोगों को पाकिस्तान में संदेह और भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

Altaf Hussain News: पाकिस्तानी सेना पर गंभीर आरोप

अल्ताफ हुसैन ने पाकिस्तान की सैन्य व्यवस्था पर आरोप लगाया कि अब तक 25,000 से अधिक मुहाजिर युवाओं की हत्या हो चुकी है और हजारों को जबरन गायब कर दिया गया। उन्होंने कहा कि इन युवाओं के माता-पिता आज भी अपने बच्चों का इंतजार कर रहे हैं।

दशकों से हो रहा है शोषण

अल्ताफ हुसैन के अनुसार, पिछले 61 वर्षों से मुहाजिरों को शिक्षा, रोजगार और सामाजिक मान्यता से वंचित रखा गया है। पाकिस्तान में उनकी न तो आवाज़ सुनी जाती है और न ही उन्हें बराबरी का हक़ मिलता है।

Altaf Hussain News: नई उम्मीद या पुरानी लड़ाई?

1947 में पाकिस्तान गए इन लोगों को यह उम्मीद थी कि वे वहां सम्मानजनक जीवन जी सकेंगे। लेकिन आज भी वे पहचान और अधिकारों की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं।

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