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Himachal Pradesh Breaking News: अघंजर महादेव मंदिर की 381 कनाल भूमि गायब, विवाद गहराया

Himachal Pradesh Breaking News | मशहूर ऐतिहासिक अघंजर महादेव मंदिर, जो महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, वर्तमान में विवादों के घेरे में है। मंदिर की 1920 के रेवेन्यू रिकॉर्ड में दर्ज 381 कनाल भूमि अब जमीनी स्तर पर दिखाई नहीं देती। इससे जुड़े कई सवाल खड़े हो गए हैं।
विस्तृत जानकारी:
धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण अघंजर महादेव मंदिर, जहां पौराणिक मान्यता के अनुसार अर्जुन को भगवान शिव से पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति हुई थी, और महाराजा रणजीत सिंह के काल में एक साधु ने वर्षों से प्रज्वलित धूने से सौ से अधिक दुसाले निकालने का चमत्कार कर दिखाया था—आज इस मंदिर की जमीन को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है।
1920 के सरकारी राजस्व रिकॉर्ड में मंदिर के नाम पर 381 कनाल भूमि दर्ज थी, लेकिन अब वह जमीन न तो मंदिर के पास है, और न ही उसका कोई निशान बाकी बचा है। यह जमीन आखिर गई कहां, इसका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिल रहा है।
मंदिर कमेटी ने सरकार से इस मुद्दे में हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने कहा कि मंदिर की जमीन पर अवैध कब्जे किए गए हैं और कुछ हिस्सों को कथित रूप से बेच भी दिया गया है। अघंजर महादेव मंदिर खनियारा धर्मशाला ट्रस्ट के महासचिव मोहिंद्र अवस्थी और ट्रस्ट के अन्य पदाधिकारी सुभाष महाजन व आरएस बद्दवार ने आरोप लगाए हैं कि मंदिर की भूमि पर कुछ लोग जबरन कब्जा कर रहे हैं और मंदिर परिसर में कुछ अनैतिक गतिविधियां भी देखी गई हैं।
मंदिर की 200 कनाल भूमि पर सरकार का अधिकार, दर्जनों लोगों द्वारा अवैध कब्जा—कमेटी ने न्यायालय का रुख किया Himachal Pradesh Breaking News
कमेटी का दावा है कि मंदिर की करीब 200 कनाल भूमि पर सरकार ने अधिकार कर लिया है और बाकी जमीन पर करीब एक दर्जन लोगों ने कब्जा जमा लिया है। वर्ष 2010 में डीसी के आदेश पर जमीन सरकार को हस्तांतरित कर दी गई, जबकि कमेटी का कहना है कि यह आदेश संविधान के खिलाफ है।
कमेटी ने इस मामले में अदालत में याचिका दाखिल कर दी है। इसके साथ ही यह भी आरोप लगाया गया है कि मंदिर की कुछ भूमि को एक साधु द्वारा बेच दिया गया, जिस पर भी मामला न्यायालय में विचाराधीन है।
मंदिर कमेटी का कहना है कि वे मंदिर को सरकारी संरक्षण में लाना चाहते हैं, लेकिन कुछ गिने-चुने साधु इसका विरोध कर रहे हैं। जबकि बहुसंख्यक सदस्यों की राय है कि मंदिर को संरक्षित करने का यही एकमात्र रास्ता है।
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